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भारत में डिजिटल डिवाइड: ग्रामीण और पिछड़े वर्ग के लिए एक चुनौती |
भारत में डिजिटल डिवाइड: जाति और ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की पहुंच – एक मानवीय दृष्टिकोण
21वीं सदी में हम जिस डिजिटल युग में जी रहे हैं, उसमें इंटरनेट केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुका है। ऑनलाइन शिक्षा, बैंकिंग, सरकारी सेवाएं और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र अब इंटरनेट पर निर्भर हो चुके हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह डिजिटल क्रांति वाकई सबके लिए समान रूप से पहुंच में है?
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जहां एक तरफ शहरों में हाई-स्पीड इंटरनेट मौजूद है, वहीं दूसरी ओर आज भी लाखों गांव ऐसे हैं जहां लोग नेटवर्क के लिए छत पर चढ़ते हैं। इस असमानता को ही डिजिटल डिवाइड कहा जाता है। और जब हम इसे जातीय और ग्रामीण दृष्टिकोण से देखते हैं, तो यह और भी गहरा और चिंताजनक हो जाता है।
डिजिटल डिवाइड क्या है?
डिजिटल डिवाइड का अर्थ है इंटरनेट, कंप्यूटर और डिजिटल ज्ञान की उपलब्धता में असमानता। यह केवल टेक्नोलॉजी का मुद्दा नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विषमता का प्रतीक भी है।
भारत में डिजिटल डिवाइड मुख्यतः तीन आधारों पर दिखता है:
- शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच
- आर्थिक स्थिति के अनुसार
- जाति और सामाजिक वर्ग के अनुसार
जातिगत असमानता और डिजिटल पहुंच
भारत में अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लोगों को पहले से ही सामाजिक और आर्थिक अवसरों से वंचित किया गया है। डिजिटल युग में भी यह स्थिति बरकरार है। कई शोध बताते हैं कि इन वर्गों के पास स्मार्टफोन, लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन की पहुंच बेहद सीमित है।
एक उदाहरण मध्य प्रदेश के धार जिले के एक गाँव का लें, जहाँ एक दलित परिवार के बच्चे को ऑनलाइन क्लास करने के लिए पड़ोसी गाँव जाना पड़ता है, क्योंकि वहाँ नेटवर्क नहीं आता और घर में स्मार्टफोन नहीं है।
ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की स्थिति
भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में लगभग 67% लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा केवल 31% है। भारत के लगभग 6 लाख गांवों में से कई अभी भी ब्रॉडबैंड सुविधा से वंचित हैं।
यह स्थिति केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि अन्य सेवाओं जैसे बैंकिंग, स्वास्थ्य, ई-गवर्नेंस, और रोजगार पर भी सीधा असर डालती है।
मानवीय दृष्टिकोण: जमीनी हकीकत
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की गीता देवी बताती हैं, “सरकार ने कहा ऑनलाइन राशन कार्ड अपडेट होगा, लेकिन हमारे गाँव में तो नेटवर्क ही नहीं आता। बेटे के फोन से खेत के बीच जाकर अपडेट करवाया।”
बिहार के गया जिले में रहने वाले मुकेश, जो अनुसूचित जाति से आते हैं, कहते हैं, “हमारे पास ना लैपटॉप है, ना मोबाइल। स्कूल में ऑनलाइन क्लास होती है, लेकिन हम सिर्फ नाम के छात्र रह जाते हैं।”
ये उदाहरण बताते हैं कि तकनीक का लाभ सभी तक समान रूप से नहीं पहुंच पाया है।
डिजिटल डिवाइड के प्रभाव
- शिक्षा: ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े छात्रों को पीछे छोड़ दिया है।
- रोजगार: डिजिटल जॉब्स और ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रियाएं भी सीमित हो जाती हैं।
- स्वास्थ्य सेवाएं: टेलीमेडिसिन जैसी सेवाएं ग्रामीण लोगों के लिए उपलब्ध नहीं हो पातीं।
- सरकारी योजनाएं: योजनाओं का लाभ लेने के लिए डिजिटल पोर्टल जरूरी हैं, जिनसे गरीब और पिछड़े वर्ग कट जाते हैं।
सरकारी योजनाएं और समाधान
1. भारतनेट परियोजना
भारतनेट (BharatNet) भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसका उद्देश्य हर पंचायत को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ना है। अब तक लगभग 1.75 लाख ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ा गया है।
2. PM-WANI योजना
Public Wi-Fi Access Network Interface (PM-WANI) के माध्यम से गांवों में पब्लिक वाई-फाई हॉटस्पॉट लगाए जा रहे हैं। इससे आम जनता को कम कीमत में इंटरनेट उपलब्ध कराया जा रहा है।
3. कॉमन सर्विस सेंटर (CSC)
CSC के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में डिजिटल सेवाएं, ऑनलाइन फॉर्म भरना, ट्रेनिंग, और बैंकिंग की सुविधाएं दी जाती हैं।
4. Internet Saathi योजना
गूगल और टाटा ट्रस्ट की इस योजना के तहत लाखों ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल साक्षर बनाया गया है।
समाधान की राह
- गांव-गांव में डिजिटल सेंटर स्थापित किए जाएं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती और स्थिर इंटरनेट सुविधा प्रदान की जाए।
- जातिगत और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुफ्त या रियायती डिजिटल उपकरण दिए जाएं।
- स्थानीय युवाओं को डिजिटल ट्रेनिंग देकर उन्हें डिजिटल साक्षरता फैलाने का कार्य दिया जाए।
निष्कर्ष
डिजिटल इंडिया का सपना तब तक अधूरा है जब तक देश का हर नागरिक, चाहे वह किसी भी जाति या क्षेत्र से हो, तकनीक से वंचित रहेगा। डिजिटल डिवाइड केवल एक तकनीकी समस्या नहीं है, यह सामाजिक असमानता की नई परछाईं है।
जरूरत है एक ऐसी नीति की जो केवल कनेक्टिविटी पर नहीं, बल्कि समानता और समावेशन पर केंद्रित हो। जब हर गाँव, हर वर्ग और हर जाति के पास समान डिजिटल अवसर होंगे, तभी सच्चे अर्थों में 'नया भारत' बनेगा।
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