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"ईश्वर की शक्ति का रहस्य" |
क्या भगवान सब कुछ बना सकते हैं? एक दर्शनिक और तार्किक विश्लेषण (2025)
यह सवाल जितना सरल सुनाई देता है, उतना ही यह दार्शनिक गहराई, तार्किक पेचीदगी और आस्था के मूलभूत विचार से जुड़ा है। "क्या भगवान ऐसा पत्थर बना सकते हैं जिसे वह खुद भी न उठा सकें?" – यह मात्र शब्दों का खेल नहीं, बल्कि यह ईश्वर की सर्वशक्तिमत्ता (Omnipotence) को लेकर गहन विमर्श का विषय है।
1. सवाल की बुनियाद: शक्ति का परडॉक्स
यह प्रश्न असल में एक तर्क-विरोधाभास (Paradox) है जिसे Omnipotence Paradox कहा जाता है। यह पूछता है कि:
अगर भगवान सब कुछ कर सकते हैं, तो क्या वे ऐसा कार्य भी कर सकते हैं जिसे वे खुद भी न कर सकें?
यह सवाल दिखने में तो सरल लगता है, लेकिन यह भगवान की शक्ति की परिभाषा को चुनौती देता है। यह तर्क के नियमों और आस्था की सीमाओं के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न करता है।
2. यदि भगवान सर्वशक्तिमान हैं...
अगर आप मानते हैं कि भगवान सर्वशक्तिमान हैं, यानी वो जो चाहें कर सकते हैं, तो इसका मतलब हुआ कि वे ऐसा पत्थर भी बना सकते हैं जिसे वे खुद भी न उठा सकें।
लेकिन अब यदि वे उसे उठा नहीं सकते, तो इसका अर्थ है कि वे सब कुछ नहीं कर सकते। और यदि वे ऐसा पत्थर नहीं बना सकते, तो भी वे सब कुछ नहीं कर सकते।
यही वह तार्किक विसंगति है जो ईश्वर की सर्वशक्तिमत्ता को तर्क के दायरे में चुनौती देती है।
3. दार्शनिक दृष्टिकोण: क्या यह सवाल ही गलत है?
कई दार्शनिक मानते हैं कि यह सवाल ही तार्किक रूप से गलत है।
उदाहरण के लिए:
- क्या कोई ऐसा त्रिकोण बनाया जा सकता है जिसकी चार भुजाएं हों?
- क्या कोई ऐसी भाषा हो सकती है जिसमें कोई शब्द ही न हो?
यहां सवाल ही तार्किक रूप से असंभव है। ऐसे में भगवान से ऐसे कार्य की अपेक्षा करना जिसे करना ही तर्क के विरुद्ध हो, एक वाक्यिक धोखा (linguistic trick) है।
4. हिन्दू दृष्टिकोण: भगवान और माया
हिन्दू दर्शन में भगवान को माया का स्वामी कहा गया है – वे भौतिक जगत के नियमों से परे हैं।
लेकिन वे अपनी लीला में कभी-कभी उन्हीं नियमों में बंधे भी नजर आते हैं – राम ने बाण चलाकर रावण को मारा, कृष्ण को बाण लग सकता है।
यह द्वैत (dualism) हमें यह सिखाता है कि भगवान चाहे तो खुद को सीमित भी कर सकते हैं – यही लीला है।
5. इस्लामी और ईसाई दृष्टिकोण
इस्लाम और ईसाई धर्म दोनों में ही भगवान को All-Powerful माना गया है। लेकिन दोनों धर्म यह मानते हैं कि:
"भगवान असंभव कार्य नहीं करते, वे केवल वही करते हैं जो यथार्थ और नैतिक हो।"
उदाहरण के लिए – भगवान झूठ नहीं बोलते, खुद को नष्ट नहीं करते, या किसी तर्कहीन कार्य को नहीं करते।
इसलिए, पत्थर वाला सवाल ईश्वर की शक्ति को नहीं, बल्कि हमारे तर्क को परखने का तरीका है।
6. वैज्ञानिक और तर्कवादी दृष्टिकोण
तर्कवादी लोग इस प्रश्न को एक सांकेतिक पहेली मानते हैं। उनके अनुसार:
- "सर्वशक्तिमत्ता" का अर्थ यह नहीं कि भगवान तर्क को भी तोड़ दें।
- तर्कहीन कार्य की मांग करना एक तर्क की गड़बड़ी है, न कि ईश्वर की कमजोरी।
इसलिए, अगर कोई कहे कि "भगवान नहीं कर सकते" तो इसका मतलब यह नहीं कि वे कमजोर हैं, बल्कि यह कि कार्य ही व्यर्थ है।
7. बच्चों और युवाओं की उत्सुकता
इस तरह के प्रश्न अक्सर बच्चों या नवयुवाओं के मन में आते हैं। यह उनके विवेकशील सोच और प्रश्न पूछने की योग्यता का संकेत है।
ऐसे प्रश्नों से बचने की बजाय, हमें उन्हें दार्शनिक मार्ग देना चाहिए ताकि वे सोचें, तर्क करें और समझें कि हर सवाल का उत्तर सीधा नहीं होता।
8. निष्कर्ष: क्या भगवान सब कुछ बना सकते हैं?
इस सवाल का उत्तर सीधा "हाँ" या "नहीं" में नहीं दिया जा सकता।
यह इस पर निर्भर करता है कि आप:
- भगवान को कैसे परिभाषित करते हैं
- तर्क को कितनी प्राथमिकता देते हैं
- और आस्था और दर्शन के बीच कैसे संतुलन बनाते हैं
संक्षेप में कहा जाए तो –
"भगवान वो सब कर सकते हैं जो तर्क, सत्य और नैतिकता के दायरे में आता है। बाकी सब हमारे सोच की सीमा है, भगवान की नहीं।"
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